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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी तृतीय प्रश्नपत्र - प्राचीन एवं मध्यकालीन काव्य

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2679
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी तृतीय प्रश्नपत्र - प्राचीन एवं मध्यकालीन काव्य

प्रश्न- महाकाव्य के लक्षणों के आधार पर सिद्ध कीजिए कि 'पद्मावत' एक महाकाव्य है।

अथवा
'पद्मावत' के महाकाव्यत्व पर एक निबन्ध लिखिए।

उत्तर -

महाकाव्य के लक्षणों के बारे में सभी विद्वानों में मतैक्य नहीं है। 'काव्यालंकार', 'काव्यादर्श' और 'साहित्यदर्पण' में आचार्यों ने अपने ढंग से महाकाव्य को निरूपित किया है। इनमें से कुछ की पंक्तियाँ यहाँ उद्धृत हैं।

सर्ग बद्धों महाकाव्य तत्रैको नायकः सुरः।
सदवंशः क्षत्रियोऽवापि धीरोदात्त गुणान्वितः।
एकेवंश भवाभूपा कुलजा बहवोऽपि वा।
श्रङ्गार वीर शान्तानाम् एको अङ्गी रस इष्यते।
आदौ नमस्क्रियाशीर्वा वस्तु निर्देश एव वा।
        X                     X                 X
सर्गान्ते भावि सर्गस्य कथायाः सूचनं भवेत्।

संक्षेप में हम महाकाव्य के निम्न लक्षण निरूपित कर सकते हैं

1- महाकाव्य को सर्गबद्ध होना चाहिए।
2- उसमें एक नायक होता है जो उच्चकुलोदभव होता है।
3- उसमें श्रृंगार, वीर और शान्त रस की प्रमुखता होनी चाहिए। अन्य रस अंग रूप में आने चाहिए।
4- उसमें धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का निरूपण होना चाहिए और किसी एक फल की प्राप्ति का आग्रह होना चाहिए।
5- उसमें विजय यात्रा, दूत-प्रेषण, युद्ध-विजय, नागर, समुद्र, पर्वत, ऋतु चन्द्रोदय, सूर्योदय, जलक्रीड़ा, संयोग, वियोग आदि का वर्णन होना चाहिए।
6- ग्रन्थ के प्रारम्भ में स्तुति या आशीर्वादात्मक छन्द होना चाहिए।
7- प्रत्येक सर्ग में एक छन्द और सर्गान्त में छन्द बदल जाना चाहिए।
8- सर्गों की संख्या आठ या आठ से अधिक हो और वे न अधिक विस्तृत हों और न अधिक संक्षिप्त हों।
9- प्रत्येक सर्ग के अन्त में आगामी सर्ग की कथा की सूचना दे देनी चाहिए।
10- सर्ग का नाम उसके वर्ण्य विषय के आधार पर होना चाहिए।
11- महाकाव्य का नाम नायक, नायिका, इतिवृत्त या किसी उद्देश्य को लक्ष्य में रखकर देना चाहिए।

पाश्चात्य विद्वानों ने भी महाकाव्य की विशेषताओं का निरूपण करते हुए बतलाया है -

1- महाकाव्य को प्रकथन-प्रधान होना चाहिए।
2- उसमें सर्वत्र एक ही छन्द का प्रयोग होना चाहिए।
3- उसकी कथावस्तु दुखान्त काव्य की तरह नाटकीय ढंग से नियोजित होनी चाहिए।
4- कथावस्तु आरम्भ, मध्य एवं अन्त के साथ-साथ एक प्राणी के समान सर्वाङ्गपूर्ण होनी चाहिए।
5- उसमें उचित भावों एवं रसों का निरूपण होना चाहिए। उसके अन्तर्गत उचित शब्द-विधान होना चाहिए।
6- कथानक में कुतूहलवर्द्धक, आश्चर्यजनक एवं असंभव घटनाओं का वर्णन होना चाहिए। कथानक में ऐतिहासिकता होनी चाहिए और उसमें असंभव बातों का भी चित्रण ऐसा होना चाहिए जो संभव सा जान पड़े।
7- कथानक में विस्तृत परिधि, विविधता, महान उद्देश्यों के साथ मैत्री, विद्रोह के स्वर की गहनता, जन कल्याण की भावना, संतप्त प्राणियों की विपत्ति दूर करने की चेष्टा, प्राचीन एवं नवीन मानव सत्यों का उद्घाटन, क्षणिक मानव जीवन को सुखमय बनाने की योजना आदि का वर्णन होना चाहिए।
8- उसकी रचना शैली कलात्मक एवं उदात्त होनी चाहिए।
9- उसमें सशक्त एवं गतिशील छन्दों का प्रयोग होना चाहिए।
10- उसमें मानव के महान उद्देश्यों का निरूपण होना चाहिए आदि।

इस प्रकार पाश्चात्य एवं भारतीय मतों का विश्लेषण करने के पश्चात् इस निष्कर्ष पर पहुँच गया है कि महाकाव्य के लिए निम्नलिखित पांच वस्तुओं का होना आवश्यक है -

(1) जीवन्त कथावस्तु
(2) नेता,
(3) रस,
(4) शैली,
(5) उद्देश्य।

इन्हीं पांचों विशेषताओं के आधार पर हम पद्मावत के महाकाव्यात्मक स्वरूप की विवेचना करेंगे।

1- जीवन्त कथावस्तु - पद्मावत की कथावस्तु का चयन महाकवि ने लोक कथाओं, किम्वदन्तियों एवं परम्परागत प्रेमाख्यानों से किया है। इसलिए इसमें ऐतिहासिकता का अभाव दिखाई पड़ता है, परन्तु कवि ने अपनी उर्वर कल्पना एवं प्रौढ़ प्रतिभा द्वारा इस प्रकीर्ण कथावस्तु को इतनी सावधानी, सजगता एवं स्वाभाविकता के साथ काव्य रूप दिया है कि वह ऐतिहासिक कथा से भी अधिक लोकप्रिय एवं आकर्षक हो गई है। इसीलिए 'आइने अकबरी' में वही कथा दी गई है, जो जायसी ने अपने काव्य में अपनाई है। जायसी द्वारा ग्रहण की गई राजा रतनसेन और रानी पद्मावती की लोककथा का इस प्रकार ऐतिहासिक कथा बन जाना इस बात का सबूत है कि कवि जायसी की कथा में कितनी तथ्यात्मकता, कितनी स्वाभाविकता, कितनी आकर्षकता और प्रभावोत्पादकता थी कि काल्पनिक होते हुए भी उसने इतिहास का स्थान ले लिया और असंभव होते हुए भी वह इतिहास वेत्ताओं के संभव जान पड़ी। कथावस्तु की यह परिकल्पना मात्र जायसी की प्रतिभा की ही परिचायक नहीं है अपितु वह कथानक की जीवन्तता की भी सूचक है। क्योंकि राजा रत्नसेन और पद्मावती की कथा में अलाउद्दीन और गोराबादल की कथा का सन्निवेश करके कवि ने पद्मावत के कथानक को आकर्षण से युक्त कर दिया था और उसे इतिहास के निकट पहुँचा दिया था। इसलिए काल्पनिक कथा को भी वास्तविक रूप देने, असम्भव घटनाओं को भी सम्भव बनाने, असत्य घटनाओं को भी सत्य जैसा प्रतीत कराने तथा लोकगाथा को भी ऐतिहासिक कथा बना देने के कारण 'पद्मावत' के कथानक में जीवन्तता आ गई है। पद्मावत की यह जीवन्त कथा 58 खंडों में विभक्त है। इसकी मुख्य कथा तो राजा रतनसेन और पद्मावती की कथा है, किन्तु जिसमें हीरामन तोता, नागमती, लक्ष्मी और समुद्र, राघव, चेतन, गोरा बादल, अलाउद्दीन आदि से सम्बन्धित प्रासंगिक कथाओं के सन्निवेश के कारण पर्याप्त विस्तार आ गया है। इसमें जनकल्याण की भावना का प्रसार, सहानुभूति संवर्द्धन की भावना, मानवीय सत्यों का प्रकटीकरण, मानवता के प्रति आस्था आदि का उद्घाटन बड़ी सजीवता के साथ हुआ है। ऐसी जीवन्त कथावस्तु के कारण ही पद्मावत में महाकाव्यत्व की गरिमा आ सकी।

2- नेता - पद्मावत का नायक चित्तौड़गढ़ का राजा रतनसेन और नायिका सिंहलगढ़ की रूपसी पद्मावती है। सम्पूर्ण कथा इन दोनों पात्रों के चारों ओर घूमती है। इस काव्य के फल का भोक्ता भी राजा रतनसेन और पद्मावती ही हैं। ये दोनों ही उच्च कुलोद्भव है तथा दोनों के उज्जवल चरित्र एवं अदम्य साहस का निरूपण पूरे पद्मावत में हुआ है। राजा रतनसेन क्षत्रिय कुल में उत्पन्न होने के साथ-साथ वीर, पराक्रमी, सोत्साही, कर्मठ, सत्यान्वेषी, वाणी में कुशल, नम्र, उदार, चरित्रवान, परोपकारी, मानवता प्रेमी, कर्त्तव्य परायण, शूरवीर आदि गुणों से युक्त है। वह तप एवं साधना में निरत होकर अपनी अभीष्ट वस्तु पद्मावती को प्राप्त करता है। सामन्तों के कहने पर भी वह बादशाह से छल और कपट नहीं करता, जबकि बादशाह उसके साथ करता है।

इसी प्रकार इस काव्य की नायिका पद्मावती भी अपूर्व सुन्दरी एवं आदर्श प्रेमिका है। वह आदर्श पत्नी, चरित्रवान, पतिपरायणा, कर्त्तव्यनिष्ठा सम्पन्न, बुद्धिमती, दूरदर्शिनी एवं कुशल गृहणी है। ये दोनों चरित्र पद्मावत महाकाव्य में उदात्त गुण सम्पन्न नेता के दर्शन कराते हैं। इसी कारण 'पद्मावत' महाकाव्य के महत्व से परिपूर्ण है।

3- रस- पद्मावत वियोग-श्रृंगार-प्रधान काव्य है, क्योंकि इसमें स्थान-स्थान पर कवि ने विप्रलम्भ के निरूपण में अद्भुत चमत्कार दिखलाया है। जायसी का वियोग वर्णन तो हिन्दी साहित्य की अमूल्य निधी माना जाता है। इसके अलावा पद्मावती के वियोग वर्णन में भी कवि ने अद्भुत कौशल दिखाया है, क्योंकि यहाँ राजा के योग के प्रभाव से ही पद्मावती प्रेम के वशीभूत हो जाती है और राजा को बिना देखे ही उसके विरह में तपने लगती है। ऐसे ही राजा रतनसेन के विरह का निरूपण भी अत्यन्त मर्मस्पर्श एवं प्रभावोत्पादक है। प्रथम तो रत्नसेन तोते के मुख से पद्मावती के रूप-सौन्दर्य की चर्चा सुनते ही पद्मावती के विरह में दुखी होता है, तत्पश्चात् जब पद्मावती शिव मंदिर में पूजा करने आती है और राजा उसे देखता है, तब राजा मूर्च्छित हो जाता है और पद्मावती के लौट जाने पर उसके वियोग में अत्यन्त व्यथित एवं व्यग्र होकर जब मरने का उपक्रम करता है। वहाँ पर भी कवि ने वियोग श्रृंगार का बड़ा ही प्रभावकारी वर्णन किया है, क्योंकि राजा के रुदन से सारा संसार उसके आँसुओं में डूब जाता है। इस प्रकार जायसी ने विप्रलम्भ शृङ्गार का तो अत्यन्त मर्मस्पर्शी वर्णन किया ही है, किन्तु संयोग श्रृंगार का वर्णन भी बड़ी तन्मयता एवं लगन के साथ किया है। जिस समय राजा रतनसेन और पद्मावती विवाहोपरान्त सिंहलगढ़ के राजभवन में रात्रि को मिलते हैं, उस समय कवि ने दोनों की भेंट का जो वर्णन किया है, वह अत्यन्त सरल, सजीव एवं स्वाभाविक है, क्योंकि उसमें दाम्पत्य जीवन की तथातथ्य झाँकी विद्यमान है। यही संयोग श्रृंङ्गार का प्रभावशाली चित्रण कवि के षटऋतु वर्णन में भी मिलता है, जहाँ एक वर्ष तक राजा और रानी प्रत्येक ऋतु में आनन्द क्रीड़ायें करते हैं। इस तरह पद्मावत में श्रृंङ्गार रस के अङ्गी रस के रूप में स्वीकार करके कवि ने उसका मनोहारी चित्रण किया है। अन्य रसों का भी चित्रण हुआ है जैसे राजा रतनसेन के बन्दी होकर दिल्ली गमन के समय रानी पद्मावती और नागमती के दुखी होकर रुदन करते समय करुण रस अपने पूर्ण प्रभाव के साथ विद्यमान है। ऐसे ही रत्नसेन के जोगी होकर घर से निकलने और बादल की युद्ध यात्रा के समय कवि ने 'वात्सल्य' रस की भी सजीव अभिव्यक्ति की है। जायसी का वीर रस का वर्णन भी अत्यन्त उच्चकोटि का हुआ है। कवि ने बादशाह की चढ़ाई के अवसर पर जो युद्ध की तैयारी का निरूपण किया है उसमें बादशाह ने सभी ओर अपने फरमान भेज दिये, युद्ध के नक्कारे बजने लगे जिसे सुनकर इन्द्र डरने लगा, सुमेरु पर्वत डगमगा गया और शेषनाथ अंगड़ाई लेने लगा आदि विवरणों में वीर रस की अत्यन्त मार्मिक व्यंजना हुई है। कवि ने चित्तौड़ की सेना और बादशाह की सेना के मध्य होने वाली लड़ाई के चित्रण में 'वीर' रस की अत्यन्त मर्मस्पर्शी अभिव्यंजना की है। इसी तरह कवि ने अन्य सरों की भी सजीव अभिव्यंजना करके पद्मावत् के 'उदात्त रस' का निरूपण किया है, जो पद्मावत को महाकाव्य की कोटि में ले जाता है।

4- शैली - 'पद्मावत' में भारतीय चरित काव्यों और मसनबी काव्यों की सम्मिलित शैली के दर्शन होते हैं क्योंकि कवि जायसी ने एक ओर तो भारतीय परम्परा में निर्मित चरित्र काव्यों की महत्वपूर्ण शैली को आधार बनाकर पद्मावत में दोहा चौपाई छन्द के अन्तर्गत एक महान गाथा को सुन्दर काव्य रूप प्रदान किया है और दूसरी ओर फारस की मसनबी शैली को अपनाकर आरम्भ में ईश वन्दना, शाहे वक्त की प्रशंसा, आत्मकथा, मुख्यकथा का प्रारूप आदि देकर छोटे-छोटे खंडों में संपूर्ण कथा को विभक्त किया है, जिसे न तो काव्य सर्गों में विभाजित किया गया है और न इन खंडों में एकरूपता ही है। पद्मावत का कोई खंड अत्यन्त विस्तृत है और कोई अत्यन्त लघु अर्थात् एक या दो छन्द का ही है। इसके साथ ही कवि ने वस्तु-वर्णनों में अत्यन्त कुशलता दिखाई है। पद्मावत का सिंहलद्वीप वर्णन, चित्तौड़-गढ़ वर्णन, नखशिख वर्णन, षटऋतु वर्णन, युद्ध-वर्णन आदि बड़े ही सजीव एवं मर्मस्पर्शी है, जो कवि की महिमामयी शैली के उत्कृष्ट उदाहरण है।

इसके अतिरिक्त कवि ने अप्रस्तुत विधान में भी बड़ी कुशलता दिखलाई है। जायसी ने अधिकांश उपमान तो प्रकृति के क्षेत्र से चुने हैं, किन्तु कुछ उपमान लोकजीवन से भी ग्रहण किये हैं जिनके द्वारा साम्यमूलक, विरोधमूलक एवं तुलनामूलक अलंकारों में अत्यन्त संजीव आ गई है। कवि जायसी ने रूपक, उपमा, उत्प्रेक्षा, विरोधाभास, रूपकातिशयोक्ति, अप्रस्तुत प्रशंसा, विभावना, प्रत्यनीक, व्यतिरेक दृष्टान्त, सन्देह, अतिशयोक्ति, तद्गुण आदि अलंकारों का निरूपण अत्यन्त हृदयस्पर्शी है।

जायसी की भाषा ठेठ अवधी है, जो जन-जीवन की भाषा है जिसमें तत्कालीन बोलचाल की अवधी भाषा का जीवन्त रूप विद्यमान है। जायसी की भाषा में विलक्षण अभिव्यंजना शक्ति भरी हुई है। इसीलिए जायसी की वर्णन शैली अत्यधिक मार्मिक एवं प्रभावशाली दिखाई देती है। जायसी ने जिस वस्तु, भाव, विचार या अनुभूति का निरूपण किया है, भाषा की अद्भुत व्यंजना शक्ति के कारण उसी में अद्भुत सरसता एवं सजीवता आ गई है, उसकी उक्तियाँ हृदयस्पर्शी हो गई है।

जायसी की छन्द-योजना भी अत्यन्त प्रवाहमयी है। यद्यपि जायसी ने दोहा चौपाई की प्राचीन भारतीय पद्धति को अपनाया है जिसका प्रयोग अपभ्रंश काव्यों में हुआ है, किन्तु जायसी की यह पद्धति इतनी लोकप्रिय हुई कि गोस्वामी तुलसीदास ने अपने जगत प्रसिद्ध महाकाव्य 'रामचरितमानस' की रचना इसी पद्धति में की है। इस प्रकार जायसी ने गरिमामयी शैली को अपनाकर अपने पद्मावत को महाकाव्य की श्रेणी में पहुंचा दिया है।

5. उद्देश्य - 'पद्मावत' का उद्देश्य है राजा रत्नसेन और रानी पद्मावती का चिर मिलन अर्थात् आत्मा और परमात्मा का एकीकरण। सूफी मतों के अनुसार जब तक जीवात्मा के साथ शराब और पानी की भांति घुल मिलकर एक नहीं हो जाता, तब तक पूर्ण अद्वैत की सिद्धि नहीं होती और तब तक उसे पूर्ण ऐक्य अथवा तादात्म्य की स्थिति प्राप्त नहीं होती। जायसी ने स्वयं लिखा है कि साधक या जीवात्मा जब तक कीट भृङ्ग न्याय की तरह परमात्मा रूप नहीं हो जाता अथवा अपने अस्तित्व को छोड़कर प्रेमस्वरूप परमात्मा में अपने को विलय नहीं कर देता, तब तक वह जीवनमुक्त नहीं होता। साधक या जीवात्मा को तो परमात्मा में इस तरह विलीन हो जाना पड़ता है जैसे बूंद समुद्र में मिलकर एक हो जाती है -

"बुंदहि समुद जैस होई मेरा। गा हेराइ तस मिलै न हेरा।'

जायसी ने भृंग और कीट, बूँद और समुद्र, रंग और पानी आदि उदाहरणों के द्वारा जीवात्मा और परमात्मा के जिस ऐक्य का निरूपण किया है और जिस चिरमिलन को प्रेम की सार्थकता बतलाया है, उसी ऐक्य, अद्वैत भाव तादात्म्य एवं चिरमिलन के उच्च आदर्श को प्रस्तुत करने के लिए ही इस 'पद्मावत' महाकाव्य का निर्माण किया है -

रंगहि पानि मिला जस होई। आपुहि खोई रहा होई सोई।

यहाँ जीवात्मा रूपी रत्नसेन परमात्मा रूपी पद्मावती से पूर्वार्द्ध में तो केवल शारीरिक रूप से अथवा बाह्य रूप में ही मिलता है, क्योंकि विवाह सम्बन्ध हो जाने से वे दोनों शारीरिक दृष्टि से ही एक होते हैं, किन्तु उत्तरार्द्ध में आकर जब राजा रत्नसेन की चिता के साथ पद्मावती सती हो जाती है, तब उनका पूर्ण तादात्म्य, पूर्ण ऐक्य, पूर्ण अद्वैत एवं पूर्ण मिलन होता है। दोनों की प्रेम गांठ इतनी मजबूती के साथ जुड़ जाती है कि फिर कभी नहीं छूटती। इतना ही नहीं, वे इस नश्वर संसार के ही साथी नहीं रहते बल्कि दोनों प्रेमियों को परलोक का भी चिर सहचर बना देते हैं -

"औ जो गांठि कंत तुम्ह जोरी आदि अन्त दिन्हि जाय न छोरी॥
एहि जग काह जो अथि नि आयी। हम तुम्ह नाँह दुहुँजग साथी॥'

पद्मावत में कवि ने आदि से अन्त तक यही प्रमाणित करने की चेष्टा की है कि प्रेम संसार में महान है। प्रेम से ही अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है। प्रेम से ही जीवात्मा को परमात्मा का साक्षात्कार होता है और प्रेम से ही यह जीवात्मा अपने पार्थिव केंचुल को छोड़कर परमात्मा में विलीन होकर मोक्ष पद को प्राप्त कर लेता है। ऐसे उच्च आदर्श और महान् उद्देश्य के कारण पद्मावत में एक महाकाव्य की गरिमा विद्यमान है।

सारांश - सारांश यह है कि 'पद्मावत' में आदि से अन्त तक विविध प्रासंगिक कथाओं से सुसम्बद्ध एक ऐसी अधिकारिक कथा विद्यमान है, जिसमें प्रेम के आदर्श का अत्यन्त हृदय स्पर्शी निरूपण किया गया है। नेता, रस, शैली एवं उद्देश्य की महानता के कारण यह एक उच्चकोटि का महाकाव्य है।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने इसे हिन्दी साहित्य का एक जगमगाता रत्न कहा है।

डॉ. शम्भूनाथ सिंह ने इसे रोमांचक शैली का महाकाव्य कहा है। डॉ. गोविन्द ने इसे मसनवी ढंग का एक सफल महाकाव्य कहा है।

डॉ. शिवसहाय पाठक ने इसे हिन्दी के श्रेष्ठतम महाकाव्यों में से एक घोषित किया है।

अतः यह निर्विवाद सत्य है कि पद्मावत में महाकाव्य की सी सशक्त प्राणवत्ता है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- विद्यापति का जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- गीतिकाव्य के प्रमुख तत्वों के आधार पर विद्यापति के गीतों का मूल्यांकन कीजिए।
  3. प्रश्न- "विद्यापति भक्त कवि हैं या श्रृंगारी" इस सम्बन्ध में प्रस्तुत विविध विचारों का परीक्षण करते हुए अपने पक्ष में मत प्रस्तुत कीजिए।
  4. प्रश्न- विद्यापति भक्त थे या शृंगारिक कवि थे?
  5. प्रश्न- विद्यापति को कवि के रूप में कौन-कौन सी उपाधि प्राप्त थी?
  6. प्रश्न- सिद्ध कीजिए कि विद्यापति उच्चकोटि के भक्त कवि थे?
  7. प्रश्न- काव्य रूप की दृष्टि से विद्यापति की रचनाओं का मूल्यांकन कीजिए।
  8. प्रश्न- विद्यापति की काव्यभाषा का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
  9. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (विद्यापति)
  10. प्रश्न- पृथ्वीराज रासो की प्रामाणिकता एवं अनुप्रामाणिकता पर तर्कसंगत विचार प्रस्तुत कीजिए।
  11. प्रश्न- 'पृथ्वीराज रासो' के काव्य सौन्दर्य का सोदाहरण परिचय दीजिए।
  12. प्रश्न- 'कयमास वध' नामक समय का परिचय एवं कथावस्तु स्पष्ट कीजिए।
  13. प्रश्न- कयमास वध का मुख्य प्रतिपाद्य क्या है? अथवा कयमास वध का उद्देश्य प्रस्तुत कीजिए।
  14. प्रश्न- चंदबरदायी का जीवन परिचय लिखिए।
  15. प्रश्न- पृथ्वीराज रासो का 'समय' अथवा सर्ग अनुसार विवरण प्रस्तुत कीजिए।
  16. प्रश्न- 'पृथ्वीराज रासो की रस योजना का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  17. प्रश्न- 'कयमास वध' के आधार पर पृथ्वीराज की मनोदशा का वर्णन कीजिए।
  18. प्रश्न- 'कयमास वध' में किन वर्णनों के द्वारा कवि का दैव विश्वास प्रकट होता है?
  19. प्रश्न- कैमास करनाटी प्रसंग का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिए।
  20. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (चन्दबरदायी)
  21. प्रश्न- जीवन वृत्तान्त के सन्दर्भ में कबीर का व्यक्तित्व स्पष्ट कीजिए।
  22. प्रश्न- कबीर एक संघर्षशील कवि हैं। स्पष्ट कीजिए?
  23. प्रश्न- "समाज का पाखण्डपूर्ण रूढ़ियों का विरोध करते हुए कबीर के मीमांसा दर्शन के कर्मकाण्ड की प्रासंगिकता पर प्रहार किया है। इस कथन पर अपनी विवेचनापूर्ण विचार प्रस्तुत कीजिए।
  24. प्रश्न- कबीर एक विद्रोही कवि हैं, क्यों? स्पष्ट कीजिए।
  25. प्रश्न- कबीर की दार्शनिक विचारधारा पर एक तथ्यात्मक आलेख प्रस्तुत कीजिए।
  26. प्रश्न- कबीर वाणी के डिक्टेटर हैं। इस कथन के आलोक में कबीर की काव्यभाषा का विवेचन कीजिए।
  27. प्रश्न- कबीर के काव्य में माया सम्बन्धी विचार का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
  28. प्रश्न- "समाज की प्रत्येक बुराई का विरोध कबीर के काव्य में प्राप्त होता है।' विवेचना कीजिए।
  29. प्रश्न- "कबीर ने निर्गुण ब्रह्म की भक्ति पर बल दिया था।' स्पष्ट कीजिए।
  30. प्रश्न- कबीर की उलटबासियों पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  31. प्रश्न- कबीर के धार्मिक विचारों को स्पष्ट कीजिए।
  32. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (कबीर)
  33. प्रश्न- हिन्दी प्रेमाख्यान काव्य-परम्परा में सूफी कवि मलिक मुहम्मद जायसी का स्थान निर्धारित कीजिए।
  34. प्रश्न- "वस्तु वर्णन की दृष्टि से मलिक मुहम्मद जायसी का पद्मावत एक श्रेष्ठ काव्य है।' उक्त कथन का विवेचन कीजिए।
  35. प्रश्न- महाकाव्य के लक्षणों के आधार पर सिद्ध कीजिए कि 'पद्मावत' एक महाकाव्य है।
  36. प्रश्न- "नागमती का विरह-वर्णन हिन्दी साहित्य की अमूल्य निधि है।' इस कथन की तर्कसम्मत परीक्षा कीजिए।
  37. प्रश्न- 'पद्मावत' एक प्रबन्ध काव्य है।' सिद्ध कीजिए।
  38. प्रश्न- पद्मावत में वर्णित संयोग श्रृंगार का परिचय दीजिए।
  39. प्रश्न- "जायसी ने अपने काव्य में प्रेम और विरह का व्यापक रूप में आध्यात्मिक वर्णन किया है।' स्पष्ट कीजिए।
  40. प्रश्न- 'पद्मावत' में भारतीय और पारसीक प्रेम-पद्धतियों का सुन्दर समन्वय हुआ है।' टिप्पणी लिखिए।
  41. प्रश्न- पद्मावत की रचना का महत् उद्देश्य क्या है?
  42. प्रश्न- जायसी के रहस्यवाद को समझाइए।
  43. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (जायसी)
  44. प्रश्न- 'सूरदास को शृंगार रस का सम्राट कहा जाता है।" कथन का विश्लेषण कीजिए।
  45. प्रश्न- सूरदास जी का जीवन परिचय देते हुए उनकी प्रमुख रचनाओं का उल्लेख कीजिए?
  46. प्रश्न- 'भ्रमरगीत' में ज्ञान और योग का खंडन और भक्ति मार्ग का मंडन किया गया है।' इस कथन की मीमांसा कीजिए।
  47. प्रश्न- "श्रृंगार रस का ऐसा उपालभ्य काव्य दूसरा नहीं है।' इस कथन के परिप्रेक्ष्य में सूरदास के भ्रमरगीत का परीक्षण कीजिए।
  48. प्रश्न- "सूर में जितनी सहृदयता और भावुकता है, उतनी ही चतुरता और वाग्विदग्धता भी है।' भ्रमरगीत के आधार पर इस कथन को प्रमाणित कीजिए।
  49. प्रश्न- सूर की मधुरा भक्ति पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
  50. प्रश्न- सूर के संयोग वर्णन का मूल्यांकन कीजिए।
  51. प्रश्न- सूरदास ने अपने काव्य में गोपियों का विरह वर्णन किस प्रकार किया है?
  52. प्रश्न- सूरदास द्वारा प्रयुक्त भाषा का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  53. प्रश्न- सूर की गोपियाँ श्रीकृष्ण को 'हारिल की लकड़ी' के समान क्यों बताती है?
  54. प्रश्न- गोपियों ने कृष्ण की तुलना बहेलिये से क्यों की है?
  55. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (सूरदास)
  56. प्रश्न- 'कविता कर के तुलसी ने लसे, कविता लसीपा तुलसी की कला। इस कथन को ध्यान में रखते हुए, तुलसीदास की काव्य कला का विवेचन कीजिए।
  57. प्रश्न- तुलसी के लोक नायकत्व पर प्रकाश डालिए।
  58. प्रश्न- मानस में तुलसी द्वारा चित्रित मानव मूल्यों का परीक्षण कीजिए।
  59. प्रश्न- अयोध्याकाण्ड' के आधार पर भरत के शील-सौन्दर्य का निरूपण कीजिए।
  60. प्रश्न- 'रामचरितमानस' एक धार्मिक ग्रन्थ है, क्यों? तर्क सम्मत उत्तर दीजिए।
  61. प्रश्न- रामचरितमानस इतना क्यों प्रसिद्ध है? कारणों सहित संक्षिप्त उल्लेख कीजिए।
  62. प्रश्न- मानस की चित्रकूट सभा को आध्यात्मिक घटना क्यों कहा गया है? समझाइए।
  63. प्रश्न- तुलसी ने रामायण का नाम 'रामचरितमानस' क्यों रखा?
  64. प्रश्न- 'तुलसी की भक्ति भावना में निर्गुण और सगुण का सामंजस्य निदर्शित हुआ है। इस उक्ति की समीक्षा कीजिए।
  65. प्रश्न- 'मंगल करनि कलिमल हरनि, तुलसी कथा रघुनाथ की' उक्ति को स्पष्ट कीजिए।
  66. प्रश्न- तुलसी की लोकप्रियता के कारणों पर प्रकाश डालिए।
  67. प्रश्न- तुलसीदास के गीतिकाव्य की कतिपय विशेषताओं का उल्लेख संक्षेप में कीजिए।
  68. प्रश्न- तुलसीदास की प्रमाणिक रचनाओं का उल्लेख कीजिए।
  69. प्रश्न- तुलसी की काव्य भाषा पर संक्षेप में विचार व्यक्त कीजिए।
  70. प्रश्न- 'रामचरितमानस में अयोध्याकाण्ड का महत्व स्पष्ट कीजिए।
  71. प्रश्न- तुलसी की भक्ति का स्वरूप क्या था? अपना मत लिखिए।
  72. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (तुलसीदास)
  73. प्रश्न- बिहारी की भक्ति भावना की संक्षेप में विवेचना कीजिए।
  74. प्रश्न- बिहारी के जीवन व साहित्य का परिचय दीजिए।
  75. प्रश्न- "बिहारी ने गागर में सागर भर दिया है।' इस कथन की सत्यता सिद्ध कीजिए।
  76. प्रश्न- बिहारी की बहुज्ञता पर विचार कीजिए।
  77. प्रश्न- बिहारी बहुज्ञ थे। स्पष्ट कीजिए।
  78. प्रश्न- बिहारी के दोहों को नाविक का तीर कहा गया है, क्यों?
  79. प्रश्न- बिहारी के दोहों में मार्मिक प्रसंगों का चयन एवं दृश्यांकन की स्पष्टता स्पष्ट कीजिए।
  80. प्रश्न- बिहारी के विषय-वैविध्य को स्पष्ट कीजिए।
  81. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (बिहारी)
  82. प्रश्न- कविवर घनानन्द के जीवन परिचय का उल्लेख करते हुए उनके कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  83. प्रश्न- घनानन्द की प्रेम व्यंजना पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
  84. प्रश्न- घनानन्द के काव्य वैशिष्ट्य पर प्रकाश डालिए।
  85. प्रश्न- घनानन्द का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  86. प्रश्न- घनानन्द की काव्य रचनाओं पर प्रकाश डालते हुए उनके काव्य की विशेषताएँ लिखिए।
  87. प्रश्न- घनानन्द की भाषा शैली के विषय में आप क्या जानते हैं?
  88. प्रश्न- घनानन्द के काव्य का परिचय दीजिए।
  89. प्रश्न- घनानन्द के अनुसार प्रेम में जड़ और चेतन का ज्ञान किस प्रकार नहीं रहता है?
  90. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (घनानन्द)

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